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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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बसंत ऋतु

बसंत ऋतु

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बहुत खूबसूरत ये नज़ारा है

दिल भी आज दिल हारा है

प्रकृति लग रही है दुल्हन

कितना सलौना रूप,

बसंत ऋतु ने सँवारा है,


महफ़िल आज जवां हैं

सबके दिलों में अरमां है

क्या ख़ूब बसंतऋतु का नारा है

टूटी हुई पत्ती खिल रही है


बनकर सोना वो हंस रही है

क्या अद्धभुत स्वर्ण नज़ारा है

लगता है आज तो साखी

स्वर्ग धरा पर उतर आया है,


हर जगह, हर ठौर पर ही,आज

दिख़ता बसंत ऋतु का नज़ारा है।


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