बसंत छाता है
बसंत छाता है
हृदय आँगन जब पुष्प खिले हो,
मन बसंत तब आता है।
होठो पे मुस्कान सजे जब,
तन बसंत तब आता है।
जब बिरहन को प्रीत मिली हो,
मन बसंत तब आता है।
जब माँ का आँचल महका हो,
तन बसंत तब छाता है।
जब प्यासे को जल मिल जाए,
मन बसंत तब आता है।
जब कोई भूखा ना सोए,
तन बसंत तब छाता है।
जब बारिश हो प्रेम प्रीत की,
मन बसंत तब छाता है।
एक दूजे के गले मिलें जब,
तन बसंत तब आता है।
यूँ तो "इन्दु" मौसम बदले,
ॠतु बसंत तब आता है।
जब मानव मानव बन जाए,
मन बसंत तब छाता है।