बस तू और मैं
बस तू और मैं
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बस तू और मैं
बाकी सब दु:स्वप्न....
तुझ में मैं ऐसे खुला जाऊं
जैसे तारों में हो सरगम
छवि में तेरी जब जब निहारूँ
जग माया की भूल मैं जाऊँ
ऐसे तुझमें मैं मिल जाऊं
जैसे नदी में धारा बहती जाऊं
टूटे ना यह प्रेम की डोरी
ऐसे सांसों की लय से बंध जाऊं
जब जब हृदय की ग्रहा खोलूँ
बस तेरी यादों को ही पाऊं
लहरों सी मैं उठूं मचलती
फिर मैं सागर में ही मिल जाऊं
चाहे जग सारा बैरी हो जाएं
पर मैं अपनी प्रीत की रीत न भूलूं
सतरंगी मैं सपने तेरे ही सजाऊँ
और तुझी में विलीन हो जाऊं
आखरी सांस भी कर दूं तुझमें अर्पण
ऐसा कुछ मैं आखरी दम कर जाऊं
बस इतनी सी चाहत मेरी
मैं बनाकर सांस तुझमें घुल जाऊं।।