बस तुम
बस तुम
मैं दो मिसरें लिखता हूँ तुम्हारे होठों के ऊपर
तुम दो किस्से लिख देना मेरे होठों के ऊपर,
मैं दो लफ्ज़ लिखूंगा, तुम्हारे जुल्फों पर सारे
तुम दो ग़ज़लों को बुनना, उन्हीं जुल्फों को सवारें,
फिर मैं ख़ामोशी लिखूंगा, तुम्हारी बातों को बुनकर
और तुम 'काशी' लिख देना टपकते उन आँसू को सुनकर,
अब मैं बस तुमको लिखता हूँ,अपने ख़्वाबों में जाकर
तुम भी बस खुदको ही लिखना मेरे ख़्वाबों में आकर।