बस एक बार लौट आओ
बस एक बार लौट आओ
गुलाब की पंखुड़ियाँ
जैसे अभी नहाई हैं ओस के सरोवर में
तुषार की चादर में धरा सिमटी है
अमलतास की झुकी शाख़ इतरा रही है
गुलमोहर बेचारा क्यों पीछे रहता
वो भी मुस्कुराता है किरणों का स्पर्श पा कर
सुबह की ताज़गी महक रही है
नभमंडल की लालिमा से जगमगाती है धरती
अगर पास तुम होते इस पल मेरे
तो जान पाते सुबह की ताज़गी में
किरणों ने प्रेम रस घोला है
सिंदूरी आकाश की बाहों में दिनकर
कैसे करवट बदलता है
अमुआ की डाल पर बैठी
कोयल की कूक से इठलाती हैं नन्ही कलियाँ
बेशर्म हवाएँ झूम रही हैं मतवाली होकर
जहाँ भी हो लौट आओ उसकी बाहों में
जिसे चाहा है तुमने ज़िन्दगी से भी ज़्यादा ।