गज़ल ---- आंखें
गज़ल ---- आंखें
तेरी एक नज़र ने तबाह कर दिया वो नशा है तेरी आंखों में
जितना ढूंढा खुद को उतना ही डुबते गए तेरी आंखों में।
नहीं कोई जानता मुझे इस शहर में बेगाना हूं मैं
जिसने भी देखा मुझे बस देखा तेरी आंखों में।
क्यूं करते हो नक़ाब कभी तो बेनकाब रहा करो
ना झुकाओ पलकें खुद को देखना है तेरी आंखों में।
तरसते रहे हम तेरे लबों से इकतारे -मोहब्बत के लिए
हम बेखबर रहे देख ना पाए हकीकत तेरी आंखों में।
रक़ीबों पर लुटा रहे हो तुम वो प्यार अपना
जो प्रेम को देखने की चाह थी तेरी आंखों में।