इश्क़ और समाज
इश्क़ और समाज
चाह रहा था दिल पर न रोका तुम्हें
बहुत दिनों के बाद आज देखा तुम्हें
अब मैं समझदार हो गया हूँ न
समाज के बंदिशों का शिकार हो गया हूँ न
इसलिए तुम्हें देखकर नजरें चुरा ली
मैंने ख़्याल सब दिल की दिल में छुपा ली
मैंने क्या पहना था तुमने,
क्या था गहना तुम्हारा बड़ी कोशिस
कर रहा पर याद न आ रहा
बस इतना ही है याद आज
बड़े दिनों के बाद आज तुम मिली थी
जब आज तुम मिली थी तुमको
देखा तो बचपन का किस्सा याद आया
जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा
याद आया जब हमे समाज के बंदिश पता न थे
जब हम साथ होकर भी लापता न थे
जब हम दोनों सिर्फ हम दोनों का साथ करते थे
न कुछ छुपाते थे बेबाक बात करते थे
पहली दफा ऐसा हुआ की तुम्हें देखने के बाद भी
खुद होठ सिली थी जब आज तुम मिली मिली थी।

