काश !
काश !
काश ये ज़िन्दगी लौट जाए उस जहां में
जब से सांसो की आवाज हुई थी,
लौट जाए वहाँ जहाँ से
ज़िन्दगी की शुरुआत हुई थी।
लौट जाए वहाँ जहाँ ज़रूरतों को
भूलकर ही गुरुर को पहचाना था हमने,
लौट जाए वहाँ जहाँ अपने छोटे छोटे सपनों को
भुलकर ही खुद को जाना था हमने।
वहाँ जहाँ कुछ न होकर भी सब कुछ था,
क्योंकि वहाँ कुछ न होने का एहसास ही बस कुछ था।
लौट जाए वहाँ जहाँ पहली बार ज़िन्दगी को जाना था,
धड़कने तो थी पर अब आज़माना था ।
वहाँ जहाँ मंज़िलो को मांझी मिला,
सुख दुख ,चाहत का साँझी मिला।
काश लौट जाए उन अधूरे पलों में,
उन पलों को पूरा कर लूँ में बस एक पल में।
लौट जाए वहाँ जहाँ खुद को छोड़ आये हैं,
वहाँ जहाँ से ज़िन्दगी को मोड़ लाये हैं।