सोनी गुप्ता

Abstract Romance

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सोनी गुप्ता

Abstract Romance

बरसों उनसे मिले हो गए

बरसों उनसे मिले हो गए

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जाने कितने बरसों उनसे मिले हो गए, 

और हम तो विरह में जाने कहाँ खो गए, 


जिंदगी हमारी सुलगती यादों में कट गई, 

जाने क्या से क्या यहाँ सिलसिले हो गए, 


आज वो पहली मुलाकात याद आती है, 

यादों के संग दूर अब शिकवे-गिले हो गए, 


उनकी बातों संग जीने की कसमें खाई थी, 

उन कसमों को याद कर हम आगे बढ़ गए, 


पहला इंतजार जब चांदनी रात में मिले थे, 

तारों भरा वो आसमान देख हम तेरे हो गए, 


तुमने वादों के बहुत ही ऊंचे महल बनाए थे, 

जाने ऐसा क्यों लगता सब हवाई किले हो गए, 


तुम्हारा इंतजार दिल में प्रेम बन बह रहा था, 

उस इंतजार में हम नदियों की तरह बह गए।


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