बरसात
बरसात
बरसातों से देख उलझता रहता है
छत से पानी रोज़ टपकता रहता है।
छत टूटी है दीवारों पे सीलन है
बादल बारम्बार गरज़ता रहता है।
माँ छाती से कब तक चिपटा कर रख्खे
बच्चा है लाचार बिलखता रहता है।
घर में आटा है न कोई सब्ज़ी है
चूल्हा क्यों बेकार सुलगता रहता है।
हर इक घर में गुर्बत है लाचारी है
बस ये है दालान बदलता रहता है।
घुटनों से तन को वो ढांपे रखता है
सर्दी में हर रात सिकुड़ता रहता है।