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Praveen Gola

Tragedy

4  

Praveen Gola

Tragedy

बंद पिंजरे में

बंद पिंजरे में

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पिंजरे में कैद होकर ,फड़फड़ाता था वो रोज ,

खुले आसमान में रहने का ,बहुत पुराना था उसे रोग।

मगर अब सब बदल चुका है ,नए - नए शौक का अब ,

इस मनुष को भी ,नया रोग लग चुका है।

बंद पिंजरे में जब ,वो पंछी फड़फड़ाता ,

सचमुच उसे देख हर बच्चा ,जोर से ताली बजाता।

एक और अमीर लोगों के ,बच्चों की खुशी ,

तो दूसरी ओर उस पंछी की ,छटपटाहट की बुझी।

अंत में जीत गई खुशी ,और हार गई वो तड़प ,

यही तो ज़िन्दगी है ,जिसमे जी रहे सब बेधड़क ||



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