बरसात का मौसम और हम
बरसात का मौसम और हम
बूंदे छलक रही थी बरसात की
संग उसके नयनों को रुला रही थी
उससे बिछड़ने की मजबूरी
और जो बढ़ने लगी है ये दूरी
ये लिखी हुई तकदीर थी या
हमसे बनी तस्वीर थी
नर्म हाथो से हौले से उसकी तपिश
एहसास दिला रही थी वोह पहली मुलाक़ात
जब उसकी मीठी मुस्कान खिल रही थी
मानो पुष्प कोई कोमल कशिश
निहार रहा था मैं उसके मृग समान नयनों को
जिसमे मेरी मेरी ही झलक थी
स्तब्ध था सुमिरन करके उन पलो को
जब प्रेम में भारी झुकाई उसने अपनी पलक थी
आज इन पलो को थामने का प्रयास है
धीरे धीरे इस हृदय में जिसने जगाई आस थी
आज अपने हृदय में समाए लेते जारही मेरी श्वास है
इस बरसात का हर झोंका
धुंधला रहा है वोह हर पल
काले मेघा संग लिए जारहे है प्रीत हमारी सुहानी
पल पल बीत रहे ये पल काश बंजाते जिंदगानी
जीवन के दौर से मैं तो मूक हुआ
अब अपनी यह कहानी गीली माटी कि ज़ुबानी।।