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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Fantasy

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SUNIL JI GARG

Abstract Drama Fantasy

बोलती किताब

बोलती किताब

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बचपन से मन करता था 

किताब बोले और मैं सुनूं 

कोई भाषा हो किताब की 

मैं फिर भी उसको समझूं 


कभी फिक्शन की ये बात 

आज बन रही है सच्चाई 

कल्पना मुझ जैसे लोगों की 

बनकर सामने है आई 


ये असली किताबों की बात है 

कोई विडियो ऑडियो की नहीं 

पन्ना पलटने जाते हम सब 

किताब बोलती जाती वहीँ 


मुझे लगा आपने न सुनी होगी 

साइंस फिक्शन की बात अज़ब

धीरे धीरे देखिएगा न आप 

कोई भी किताब बोलेगी जब 


हर भाषा दूसरी भाषा में 

बदल जायेगी आसानी से 

कैमरा पढ़ेगा एक पेज को 

फिर आवाज आएगी मानी ये 


ऐसी हो कोई नयी बात गर 

आपको पता हो मुझे बतायें 

मुझको हर बात कविता में जंचे

मुझसे उस पर भी कविता लिखवायें।


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