बोल बम
बोल बम
साँसें साधी मन भी साधा
हर पग सम्भल सम्भल के राखा
ज्ञान भस्म तन पर लपटाय
जपा निरन्तर शिवा शिवाय
हर रिश्ते का तोड़ के धागा
जग सोता जब मैं था जागा
गंग के उद्गम से चल के
काशी में थोड़ा थमके
मैं बहा निरन्तर तेरे संग
पीकर तेरे नाम की भंग।
न बादल में भीगा मैं
न ओढ़ा हरा धरा का रंग
फिर भी तुझको पा न सका
कुछ ऐसा चढ़ा अहम का रंग
साधना चाहा भोले को
पर भोला खुद न बन पाया।
मैं मूर्ख बड़बोला हाय
बोल बम न कह पाया।