बनो ख़ुद ही कश्ती ख़ुद पतवार
बनो ख़ुद ही कश्ती ख़ुद पतवार
जब मंज़िल हो भव सागर पार,
ना साथ हो कश्ती, ना कोई यार,
करो ना तुम किसी का इन्तिज़ार,
बनो ख़ुद ही कश्ती ख़ुद पतवार।
जब पड़ा हो लफ़्ज़ों का भंडार,
कोई ना हो सुनने को तैयार,
पन्नों पर करो शब्दों का वार,
बनो ख़ुद ही कश्ती ख़ुद पतवार।
जब दस्तक खुशियाँ ना दे पायें,
और ग़म की भार सही ना जाये,
ज़ज़्बे की उठाओ तुम हथ्यार,
बनो ख़ुद ही कश्ती ख़ुद पतवार।
जब उज़ाला जल्द ही जाने को हो,
पास डर का अंधेरा आने को हो,
दो रात को भी उतना ही प्यार,
बनो ख़ुद ही कश्ती ख़ुद पतवार।