बलिदान मेरे सैनिकों का
बलिदान मेरे सैनिकों का
सौ सौ सैनिक शहीद हुए तब कहीं ये उपवन खिलता है
यहां केसर की खेती में इनके खून का रंग ही दिखता है
जब तुम बागों में टहले हो और डल में नाव चलाई है
तब एक एक सैनिक ने अपने सीने पे गोली खाई है ।
क्या कसूर हुआ उससे बोलो जो राइफल पे न हाथ गया
ट्रिगर दबाने से पहले ही उसकी पीठ पे वार हुआ
सुन आतंकी था सच में एक माँ का जाया तू
,और माँ का अपनी था तूने दूध पिया ।
तो सामने से आकर अपनी ललकार सुनता तू
तू तो गद्दार घर का निकला जो घर से रोटी छीन गया
अब भाई को नौकरी नही तेरे न पेट मे रोटी माँ के है
पिता की आंखे नीची है और बहन शर्म से डूबी है ।
तू कैसा पूत बना उनका ,तूने जीवन बेकार किया
न सोची कुछ घर की तूने ,बस लूटा अपना संसार दिया
ये निशातबाग के फूल भी शर्म से आज शर्मशार हुए
एक अंधे आतंकी ने चवालीस फूल वतन के उजाड़ दिए ।
न सुरमई अब कोई शाम वहां न सुबह कोई रंगीन रही
कश्मीर की मिट्टी में देखो अब खुशबू खून की महक गई
डल झील के पानी ने भी अब अपना रंग बदल डाला
खिलते थे कमल जिसमे सौ सौ उसको रक्त रंजीत कर डाला।
ये सैनिकों का ही दम है जो सांस चैन की लेते हो
अरे बेशर्मो शर्म करो फिर भी तुम पत्थर फेंकते हो
जब आती विपदाएं हैं तुम पर तब क्यो आर्मी को पुकारते हो
हो सच में संतान एक पिता की तुम ।
तो खुद को खुद से क्यो न तारते हो
ये सैनिक है जिनके दम पर तुम दिन रात चैन से रहते हो
रोटी भी इनके दम से और नींद भी इनके ही दम से
न जाने क्यों न ये बात समझ तुम अपना जीवन गुज़ारते हो
