उठ खड़ी हो
उठ खड़ी हो
उठ खड़ी हो बन द्रौपदी
तू धनुष टनकार कर
छोड़ अंतर्नाद को तू
जोर से चीत्कार कर ।
गूंगा बहरा शहर है
बात ये सुनता नही
बात अपनी कहने को
मुख में तू कटार धर ।
जिस्म तेरा एक कहानी
रख छुपा इसको कहीं
और दो दो हाथ करने
बाहुबल से वार कर ।
एक ज्वाला तेरे अंदर
भस्म कर सकती जहां
कर संचित दिल में अपने
टूट फिर बन कर कहर ।
मुर्दा यहां के लोग है
घुड़की से डर जाएंगे
चीख सांसो से लगा तू
देख फि
र अंजाम को ।
तुझ से क्या टकराएंगे ये
इनका वजूद तुझसे ही है
तेरे दम पे दुनिया इनकी
सोच का विस्तार कर ।
माँ बहन और पत्नी ,बेटी
बांध रिश्तों को रही
खोल दे अब सारे धागे
अस्मत तू सबकी तार कर ।
छोड़ रोना बेबजह का
स्वाभिमान झंकार कर
उठ, हो जा अब खड़ी तू
मंजिल पर अपनी वार कर ।
सब है अब तेरे ही बस में
ठान ले गर मन में तू
तेरे कदमों में जहां है
चल फ़लक तक मार कर ।