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Nisha Gupta

Inspirational

4.7  

Nisha Gupta

Inspirational

उठ खड़ी हो

उठ खड़ी हो

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उठ खड़ी हो बन द्रौपदी 

तू धनुष टनकार कर 

छोड़ अंतर्नाद को तू

जोर से चीत्कार कर ।


गूंगा बहरा शहर है

बात ये सुनता नही

बात अपनी कहने को

मुख में तू कटार धर ।


जिस्म तेरा एक कहानी

रख छुपा इसको कहीं

और दो दो हाथ करने

बाहुबल से वार कर ।


एक ज्वाला तेरे अंदर

भस्म कर सकती जहां

कर संचित दिल में अपने

टूट फिर बन कर कहर ।


मुर्दा यहां के लोग है 

घुड़की से डर जाएंगे

चीख सांसो से लगा तू

देख फिर अंजाम को ।


तुझ से क्या टकराएंगे ये 

इनका वजूद तुझसे ही है 

तेरे दम पे दुनिया इनकी

सोच का विस्तार कर ।


माँ बहन और पत्नी ,बेटी

बांध रिश्तों को रही 

खोल दे अब सारे धागे

अस्मत तू सबकी तार कर ।


छोड़ रोना बेबजह का 

स्वाभिमान झंकार कर 

उठ, हो जा अब खड़ी तू

मंजिल पर अपनी वार कर ।


सब है अब तेरे ही बस में 

ठान ले गर मन में तू 

तेरे कदमों में जहां है 

चल फ़लक तक मार कर ।



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