कौन है ये
कौन है ये
ध्यान न ख़ुद का रखा कभी
नेह समर्पण सदा करती रही
जिंदगी के हर लम्हें को
वारती सब तुम पर रही।
किसने देखे देह के छाले
दाल चूल्हे पर सवंरती रही।
हर रोज फूली फूली रोटियां
पेट सबका भरती रही।
टूटती जब देह ज्वर से
उसने कब कोई चाह करी
एक प्याला चाय को
आस मन में तरसती रही।
किसने देखी पीड़ा मन की
जो सदा ही अनकही रही
उठ सवेरे मंदिर में सलामती की
दीया बाती करती रही।
खो दिए जब होश उसने
शर्म कुछ आई तभी
क्यों नहीं रखती हो ध्यान
बात तब भी ये सुनती रही।
हाँ माँ ही ऐसी धैर्यशाली कर्मशील
एक कृति बनती रही
शीश प्रभु ने भी झुकाए जिसके सामने
वो फिर भी हर युग में बिखरती ही रही।
