अतीत....।
अतीत....।
अतीत के वो पन्ने आज भी मुझे कचोटते हैं,
मेरे जख्मों को ताजा करते हैं,
मुझे फिर पीछे धकेलते है,
मुख मोड़ लूं फिर भी सामने आ जाते हैं,
वो अतीत के दफन किए राज,
वो दर्द,
वो पीड़ा,
वो यातना,
वो प्रताडना,
भूल बैठी जिन जख्मों को,
फिर से ताजा हो,
मुझे आगे बढ़ने से रोकते हैं,
पर शायद उनको पता नहीं,
उस दर्द पीड़ा को पीछे छोड़,
मैं बढ़ गयी आगे हूं,
अब सिर्फ वो मेरा बुरा अतीत है,
जो सिर्फ मेरी हिम्मत को ललकारते हैं,
मुझे कमजोर समझने की भूल करते हैं,
पर उन दर्द को स्वीकार कर आगे बढ़ी हूं,
उस पीड़ा में तप कर सोना बनी हूं,
उन प्रताडना से जूझ कर जीना सीखी हूं,
उस यातनाओ को झेल मुस्कुराना सीखी हूं,
क्या पता उन्हें अब मैं वो पाषाण हूं,
जिसे हिलाना इतना आसान नहीं,
चाहे आप जाए भूचाल,
मुझे मेरी पहचान को मिटा पाना इतना आसान नहीं,
सोचती हूं कभी कभी,
अतीत की यादें सिर्फ दर्द नहीं देती,
कभी कभी हमारे भीतर छिपी कला को निखार देती है,
जिन जख्मों ने मुझे कुचला था,
उन पर मरहम लगाने का काम करती है,
याद दिलाती है वो मुझे वो मेरा कल है,
और आज अभी बाकी है,
जिसमें मुझे फिर निखरना है,
फूलों की भांति फिर खिलना है,
हवाओं की भांति खुद में बहना है,
खुलकर फिर से जीना है।
