बलात्कार
बलात्कार
गूंजती है आज भी फिज़ा में हजारों सिसकियां,
घुट घुट कर तड़पती है इस समाज में बेटियां,।।
किस्सा बलात्कार का आज फिर अख़बार में दिखा है,
एक बेटी के खून से आज फिर अख़बार सना है,
क्या था कसूर उसका,
क्या बेटी होना ही कसूर था उसका,।।
गूंजती है आज भी फिज़ा में हजारों सिसकियां,
घुट घुट कर तड़पती है इस समाज में बेटियां,।।
कैसे जिए इस समाज में नारी जहां दरिंदे बस्ते हो,
भेड़ियों ने जहा इंसान के चहरे पहने हो,
आखिर कब तक नारी की इज्ज़त यूं तार तार होगी,
आखिर कब इस समाज की गलियां बेटियों के लिए सुरक्षित होगी,।।
गूंजती है आज भी फिज़ा में हजारों सिसकियां,
घुट घुट कर तड़पती है इस समाज में बेटियां,।।
एक बेटी की चीख ना जाने कहा खो जाती है,
क्यों बलात्कार की खबरे बस खबर बन कर रह जाती है,
सह कर हर दर्द उसने भी दम तोड दिया,
कालिख से भरी इस दुनिया को एक बेटी ने अलविदा कह दिया,।।
गूंजती है आज भी फिज़ा में हजारों सिसकियां,
घुट घुट कर तड़पती है इस समाज में बेटियां,।।
लोक लाज की सीख हर बेटी को दी गई,
ज़रा संभल कर चलने की सीख आखिर क्यूं उसे दी गई,
बेटो को समाज क्यों कोई सीख नही देता,
नारी का सम्मान करना आखिर क्यों कोई बेटो को नही सिखाता,।।
