बिटिया
बिटिया
मां मैं तेरे घर की चिड़िया
देख पंख हो गए तेरे जैसे उड़ लेने दो
न आकाश में जानती हूं चली जाऊंगी एक दिन
नए आशियाने में पंख तो होंगे
फिर भी पर आकाश न होगा मेरे हिस्से का
मर्यादा के जंजीर में जकड़ी जाऊंगी
चख लेने दो न तेरे हाथों का स्वाद
फिर कहां लांघ पाऊंगी उस दहलीज को
रोज-रोज कहां उस स्वाद से मिल पाऊंगी
कभी खिला कर सबको खुद भूखी सो जाउंगी
आज छोटी-छोटी जीद पूरी कर लेने दो
न फिर मेरी जीद भी कहां "जिद" रहेगी
खुद रूठ कर खुद ही मान जाऊंगी
मां मैं तेरे घर की चिड़िया मुट्ठी भर आकाश दे दो न
मेरे हिस्से की उड़ान भर लेने दो न।