बिटिया की विदाई
बिटिया की विदाई
शादी के एक महीने बाद सुमन अपनी माँ के घर जा रही थी,उसे बड़ी खुशी थी कि एक दिन भी अपनी माँ से अलग नही रहने वाली सुमन आज पूरे एक महीने के बाद अपनी माँ से मिलेगी।उसने अपने पति राजेश से कह भी दिया था कि वह एक सप्ताह वही रहेगी।
खुशी उत्साह के साथ वह घर पहुँची, घंटी बजते ही मॉं ने दरवाजा खोला,वह घर में घुसी ।उसे लग रहा था कि भाई भाभी भतीजा भतीजी सब उसका इंतजार कर रहे होंगे,पर घर के सन्नाटे ने उसे दुखित कर दिया।
उसने माँ से पूछा कि बाकी लोग कहाँ हैं तो माँ ने बताया कि सुरेश के ऑफिस से लोग पिकनिक पर गए हैं तो ये लोग भी गए हैं वह थोड़ी उदास हुई फिर सिर झटककर माँ से बात करने लगी।माँ ने उसके और राजेश के लिए चाय नाश्ता मँगवाई।चाय पीकर राजेश ने जाने की इजाज़त माँगी और चूँकि जरूरी काम था तो रोकने पर मना करके चला गया।
इधर सुमन आराम करने के लिए अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगी तो माँ ने कहा "सुमन तू चल मेरे कमरे में उस कमरे में अब प्रज्ञा उसकी भतीजी रहने लगी है।"उसे अजीब महसूस हुआ।
फिर मॉं के बिस्तर पर आकर लेट गयी।अपने कपड़े वाला सुटकेस जो वह बाहर ही छोड़ दी थी,माँ लेकर कमरे में आई और बड़बड़ाने लगी ,"अब इतना बड़ा सुटकेस कहाँ रखूं?" उसने माँ से कहा माँ अब इतना भी जगह नही है ।माँ ने कहा कि अरे ऐसी बात नही अब कौन सा ये तेरा घर है इसलिए उस हिसाब से जगह नही बची है।
उसकी आँखों में आँसू आ गए,उसने अपने पति को फ़ोन लगाया और बोला "कल आप आ जाइयेगा घर चलूँगी।आपके बिना मन नही लग रहा।"
उसे लग रहा था कि शादी के दिन नही आज उस बेटी की सदा के लिए घर से विदाई हो गयी है।