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Rashmi Prabha

Tragedy

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Rashmi Prabha

Tragedy

बिना स्याही

बिना स्याही

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उन लम्हों का हिसाब हम क्यूँ करें

जिन पर होनी की पकड़ थी

हम कितना भी कुछ कहें

हमारी राहें जुदा थीं

तुम आकाश लिख रहे थे

मैं पिंजड़े की सलाखों से

आकाश को पढ़ना चाह रही थी ...


बिना स्याही

तुमने बहुत कुछ लिखा

और बन्द कमरे की स्याह घुटन में

मैंने बहुत कुछ पढ़ा

तुम लिखना नहीं भूले

मैं पढ़ना नहीं भूली

पर अतीत के वे पन्ने

जो अनचाहे लिखे गए

उनको मैं पढ़ना नहीं चाहती

क्या तुम उन शब्दों को

मिटा सकते हो ?


यकीन करो -

अभी भी मेरे पास खाली स्लेट है

और कुछ खल्लियाँ

और कुछ मनचाही इबारतें

वक़्त भी है -

तो लिखो कुछ मनचाहा

ताकि इस बार

खुली हवा में मैं पढ़ सकूँ

सबकुछ सहज हो जाये ...


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