STORYMIRROR

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

4  

PRATAP CHAUHAN

Tragedy

बिन आंसू ये आंखें रोती

बिन आंसू ये आंखें रोती

1 min
415

कोरोना के क्रूर कहर से,

व्यथित हुआ मन मेरा।

लाखों असमय बिछड़ गए हैं,

हर ओर है दु:खद सवेरा।


सैनिक हुं मैं इसी देश का,

यह भारत देश है मेरा।

देश की पीड़ा मेरी पीड़ा...

ये पीड़ा देख मैं रोया।


समाचार पत्रों में प्रतिदिन,

बहु शव संख्या छपती।

बिन आंसू के आंखें रोती,

मेरी रूह निरंतर कंपती।


जो दिल में बसते थे सबके,

बिछड़ गए वह प्यारे।

तरस गए छूने के लिए,

ना पहुंचे हाथ बेचारे।


हुई हताहत सारी दुनियां,

यह कैसा कहर सृष्टि का।

हर कोई है ठगा-ठगा सा,

कोई मोल नहीं हस्ती का।


विनती है तुमसे यह भगवन,

अब शांत करो इस विपदा को।

यह शक्ति दो हर पीड़ित को,

वह सहन करें इस विपदा को।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy