बीती रात कमल दल फूटे
बीती रात कमल दल फूटे
रात चाँदनी के आँचल से
तारे थे कुछ टूटे
गिर के शांत सरोवर में वो
बनके कमल दल फूटे।
कुछ तो हुआ ही होगा ऊपर
यूँ तो कोई न मोह तजता
शायद चाँद का चाँदनी से मोह
था तारों को अखरता।
कहने को तो वो
दोनों खुद में थे सम्पूर्ण
पर तारों की झालर से ही
उनका रूप निखरता।
आज कमल दल बनके
वो तारे हैं इठलाये
उनके प्रेम में कितने ही
भँवरे है बौराये।

