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Priti Khandelwal

Tragedy

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Priti Khandelwal

Tragedy

भूख

भूख

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बिलखती हुई बेटी की सिसकती हुई अतड़ियां

करती नहीं ज़िद खिलौनोंं की

क्योंकि समझती है कीमत वह रोटी की


मां मुझेेेे भूख लगी हैैैै

कहती है तो सिर्फ यही...

एक रोटी दे दो ना मां ...

रोटी ना दो चलो कुछ नहीं. 

दो घूंट पानी तो दो ना मां...


घर में अन्न का दाना तो क्या...?

पीने को पानी तक ना

निज लाचारी पर हंसती ...

चिंतन करती रही बस मां...

खुद की भूख का होश नहीं ...

बेटी की भूख से डर रही

रोटी से ज्यादा पर खुद की

अस्मिता पर मर रही ...

बरसों से संभाली अपनी

अस्मिता रोटी पर कैसे लुटाऊँ

बोटी नोचकर रोटी देते..


क्या इज्जत का सौदा कर आऊँ

इसी सोच में पगला रही है...

रूह तक भी चीत्कार रही है

बाहर अन्न के ढेर लग रहे ....

भीतर भूख कराह रही है ...

भूख का नंगा नाच देखकर

आंखों के आंसू सूख चुके हैं ...

गोद मैं बेहाल बेटी के ...

आंसू भी अब मूक हुए हैं

भूख से बिलखते बच्ची ...

जो अब नहीं है रोती ...

इक लाश को भी भला साहब भूख कभी है होती?



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