सिकंदर
सिकंदर
जो जीता वो है सिकंदर
यह है दुनिया का दस्तूर
जो हारा वह मारा गया
हो जाती है उससे दुनिया दूर
चारों ओर बस भागदौड़ है
धनी बनने की लगी है होड़
इस दुनिया का अब क्या होगा
सोचो आप जरा करके गौर
सबका बस एक ही भगवान
सब हो गए रुपयों के दास
न रिश्ते नए नाते जाने
सब पैसे की बातें माने
निर्बल का तो अस्तित्व ही नहीं
पैसा है जहां सब कुछ है वही
स्वार्थ रूपी दीमक सब कुछ चाट गया
बेईमानी चोरी डकैती का भंडार भर गया
( यह सब क्यों हो रहा है क्या आपको है पता)
क्या है उचित और क्या अनुचित
यह कोई ना सोचता
जैसे भी हो पैसा आए
पैसे से ही सब कुछ है होता
बेटा बाप को है मारता
तो भाई भाई का दुश्मन
जब खून ही बने खून का प्यासा
तो दुनिया के बचने की कैसी आशा
चारों ओर बेईमानी है और है भ्रष्टाचारी
इन सब को बढ़ावा देने वाले
ही बने फिर शिष्टाचारी
आस्तीन के सांप है यह
जहरीले और हैं विषैले
ऊपर से साफ दिखने वाले
ही मन के हैं कितने मैले
अगर ऐसा ही चलता रहा
तो एक दिन ऐसा आएगा
एक मानव न बचेगा पृथ्वी पर
सब कुछ समाप्त हो जाएगा।