हुनर
हुनर
हुनर किसी की दया का मोहताज नहीं
ना ही रोके किसी के रुकता है ,
शरीर की रक्त शिराओं की तरह
यह तो रोम रोम में बसता है।
छिपाने से छिपता नहीं है
ना मिटाने से मिटता हैं
किसी नाम की जरूरत नहीं
अपने आप उजागर होता है
जरूरत है बस सही समय की
और खुद का हुनर पहचानने की
किसी तालीम की जरूरत नहीं
वक़्त के साथ निखरता है।