भूख
भूख
समय से पहले
बूढ़ी हो चुकी बेडौल, खुरदरी हथेली पर
कुछ रखूं
इससे पहले मन किया
इसे धो लूं
(शायद मदर टेरेसा का कुछ
अंश उतर आया था अंतस में !)
पर
हथेली खुरदरी थी, खुरदरी ही रही।
सालों से
पर्त दर पर्त जमती धूल की पपड़ियां
झटके से
उतारी भी तो नहीं जा सकतीं
न धूल सनी हथेली से,
न ही पांव पड़ी बिवाई से।
मेरी भी ज़िद रही
कि हथेली की रेखाओं को देखूं
देखूं
जीवन की रेखा गहरी है
या भाग्य की;
एक – एक पपड़ी उतरती रही
हल्के हाथों से
कि कहीं मेरी लापरवाही
सालों से दबी छुपी लकीरों को
ख़ून से न रंग जाए।
किंतु
धूल की परतों के नीचे
हथेली पर
सवालिया नज़रों से मुझे देखती एक रेखा
‘ भूख ‘ की
अंतस में मदर टेरेसा का अंश होने
की संभावना पर प्रश्न चिह्न लगाती हुई !