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Anupama Chauhan

Tragedy

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Anupama Chauhan

Tragedy

भूख

भूख

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भूख आज जमीं पर गुहार कर रही थी।

छोटी से एक बच्ची गरीबी में पल रही थी।

उसे स्वाद ना पता मीठे और नमकीन का,

जिसकी जिव्हा भूख से मचल रही थी।

हाँ!भूख आज पैसों की आग से जल रही थी।


माँ थी, साथ उसके ज़रा पास में ही,

पर एक पिता की कमी बहुत खल रही थी।

एक दाना न गया था पेट में मासूम के,

और आज ये धूप भी जल्दी ढल रही थी।

हाँ!भूख आज पैसों की आग से जल रही थी।


वो नज़रों से देखती सड़क पर गाड़ियों को,

बस कुछ ऐसे ही उसकी भूख बहल रही थी।

मिलेगी दो जून की बराबर रोटी हमें भी,

किसी कोने में एक ऐसी ही आस पल रही थी।

हाँ!आज भूख पैसों की आग से जल रही थी।।



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