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भुला दो हमको

भुला दो हमको

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न सीओ होठ, न ख़्वाबों में सदा दो हम को

मस्लेहत का ये तकाज़ा है, भुला दो हम को।


हम हक़ीक़त हैं, तो तस्लीम न करने का सबब

हाँ अगर हर्फ़-ए-ग़लत है, तो मिटा दो हम को।


शोरिश-ए-इश्क़ में है, हुस्न बराबर का शरीक

सोच कर ज़ुर्म-ए-मोहब्बत की, सज़ा दो हम को।


मक़सद-जीस्त ग़म-ए-इश्क़ है, सहरा हो कि शहर

बैठ जाएंगे जहाँ चाहे, बैठा दो हम को।।


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