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अहसान बिन 'दानिश'

Others

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अहसान बिन 'दानिश'

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नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो ..

नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो ..

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नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो क्या होगा

हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा


नई सहर के बहुत लोग मुंतज़िर हैं मगर

नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा


न रहनुमाओं की मज़लिस में ले चलो मुझको

मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा


ग़म-ए-हयात से बेशक़ है ख़ुदकुशी आसाँ

मगर जो मौत भी शर्मा गई तो क्या होगा


शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारनेवालों

ख़िज़ाँ-सिरिश्त बहार आ गई तो क्या होगा


ये फ़िक्र कर कि इस आसूदगी के धोके में

तेरी ख़ुदी को भी मौत आ गई तो क्या होगा


ख़ुशी छीनी है तो ग़म का भी ऐतमाद न कर

जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा


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