बहती चिनार
बहती चिनार
बहती चिनार पे डोलती काठ की कश्ती
वादी में झूमते दिलकश दरख्तों की बस्ती,
ये बीच दरिया को काटते ठंडे के पानी रैले
बर्फ की नरम चादर ओढ़े ये दबे से बुलबुले,
ये पल हैं सुकुन के चाहत के नम एहसास के
ये घेरे हैं मुझे चाहत से सहला रहे प्यार से,
अंदर की गर्मी से निकलता ये धुआं भी जमा है
कि जो लम्हे बिसरे हुए थे कल...
उन्हे हाथ में लिए आज भी कोई खड़ा है,
वो बुला रहा है मुझे , जाने ये कैसी कशिश है
थाम लूं ख़ुद को यहीं .....
या जाकर पूछूं उनसे कि क्या ख्वाहिश, जुस्तजू है,
बात क्या, एक नज़र झीने हिजाब से वाबस्ता हो
बस यही तमन्ना है कि खुल के उनका दीदार हो ,
गुफ्तगु की गुंजाइश माशाअल्लाह बरकरार रहे
धड़कन गुनगुनाएं आंखों से जिगर में तीर चले।

