भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
लोकतंत्र का बना अचार
फैल गया है भ्रष्टाचार
भाड़ में गए शिष्टाचार
बदल गया है गीता-सार
चारों ओर हवस-कामना
नही रहा सच्चा प्यार
है स्त्री जाती असुरक्षित
बढ़ रहे है अत्याचार
मंत्री सारे मिलकर मारे
किसी की भी हो सरकार
अपनों की बोली लगाते
एसे राजाओं का दरबार
इतना फैला ये व्यापार
हम भी इसमे भागीदार
मुसीबत जो आई कभी
रिश्वत देकर किया पार
हुए भ्रष्टाचार पे उदार
भूल गए सब संस्कार
या करो वीरों सा वार
या ग़ुलामी करो स्वीकार
मुँह फेर बैठे सब यार
अधर्म का बड़ा प्रसार
सभी जगह भ्रष्ट अपार
जल्दी आओ पालनहार