भरोसा
भरोसा
भरोसा किस पर करूँ
सब कुछ तो छलना है
तमाशा क्यूँ कब करूँ
अब तो बस चलना है !
राह चलते हुए तुम
क्या कभी भटके हो
आह भरते हुए गर
क्या कभी अटके हो
सुना है रुशवैयों की
दास्तां अजीब होती है
चाह होते हुए मन की
रब तो ना मिलना है !
फुरसत कभी नहीं सबको
जो भी बस चलते हैँ
मंजिल का सफर मालूम है
बस फुरसत ही तो है हमको !
आज संभाल लिय़ा तुमने
कल कोई क्या आयेगा
आदत बदलते हो तुम
तुमको ही भटकना है !
