भला शिकायत कैसी जब हम खुद उन राह पर नहीं चल पाए...।
भला शिकायत कैसी जब हम खुद उन राह पर नहीं चल पाए...।
जब कभी खुद को देखती हूं तो यह सवाल हमेशा मन में आता है...
हम बच्चे,
कितनी आसानी से माता पिता को गलत समझ लेते है,
उनके पांइट ऑफ व्यू को समझें बिना उन्हें परख लेते हैं,
आखिर क्यों होते हैं हम ऐसे?
जो नहीं समझ पाते उसके पीछे उनका क्या उद्देश्य है,
जो नहीं जान पाते उसके पीछे छिपी हमारी भलाई,
क्यों हम इतने स्वार्थी और लालची होते हैं?
जो बस अपने बारे में सोचकर खुश रहते हैं,
और अपनी ही बातों को अहमियत देते हैं,
क्यों नहीं समझ पाते हम?
माता पिता बनना आसान है,
पर जिम्मेदारी को निभाना उतना ही मुश्किल,
खुद की प्रतिभाओं को नजरंदाज कर खुश रहना,
हर वक्त बच्चों की भलाई के बारे में सोचना,
कुछ खरीदने से पहले दस बार सोचना,
मुश्किलों में भी चेहरे पर मुस्कराहट दिखाना,
सिर्फ माता पिता को ही क्यों आता है?
क्यों हम बच्चे उनके जैसा नहीं बन पाते हैं?
क्यों हम उनके दर्द को नहीं देख पाते हैं?
क्यों हम हर वक्त अपनी खुशी चाहते हैं?
क्यों कभी हम समझौता करना नहीं सीख पाते हैं?
आज तक पता नहीं चला...,
पर जब खुद मां बनी,
तब जाना क्यों माता पिता हर बात पर हमें टोकते थे?
क्यों हमसे इतने सवाल पूछते थे?
क्यों हमें अपनी नजरों के सामने रखना चाहते थे?
क्यों हमारे सामने इतने सख्त रहते थे?
आज जब हमारे बच्चे हमें नहीं समझते तब एहसास होता है,
हम भी कहां अपने माता पिता को कभी समझ पाए,
कहां कभी उनकी खुशियों के बारे में सोच पाए,
फिर हम क्यों कर रहे शिकायत अपने बच्चों से?
जब हम खुद अच्छे बच्चे साबित नहीं हो पाए।