भिखारी
भिखारी
हर रोज
उसी जगह
सिग्नल से पीछे
सड़क के किनारे से
दिवार का सहारा लिए हुए
देखती हूँ उस भिखारी को वहाँ
वहीं से बैठा वह निहारता
सूनी आँखों से यूृँ ही
हाथ नहीं फैलाता
छड़ी पकड़े है
उत्सुकता से
देखता हर
गाड़ी को।
रोज ऑफिस
जाते हुए देखती
हर बार उसी जगह
गाड़ियों को टकटकी बाँधे
लगता है मानों उसे इंतजार हो
अपने उस बेटे का जो उसे
किसी बहाने वहाँ छोड़
वापिसी का झाँसा दे
बचारे को तड़फने
मरने के लिए
छोड़ गया
यहाँ।
