भिखारी और रोटी
भिखारी और रोटी
ताश के पत्तों की तरह
सिमट जाती है भूख
यूं ही नहीं मिलते रोटियां
ना जाने कितनी मेहनत करके
खाने को मिलती है दो रोटियां ।।
भिखारी एक ऐसा शब्द जिसकी शुरुआत होती है,
मजबूरियों से लेकिन हम लोग उसे पागल और चोर कहते फिरते हैं ।
ना उनकी मजबूरी को समझते हैं ना उसकी मजबूरियों को झेलते हैं।
दुनिया बनाने वाले परमात्मा तूने ऐसा इंसान को क्यों बनाया
जो इंसान से इंसान को मिट्टी के गुड़िया से भी बदतर समझते हैं ।
माटी की मूर्ति बना कर पूजते हैं,
लेकिन सामने असहाय देखकर मुंह मोड़ लेते हैं
भिखारी होने से अच्छा है मूरत बना दे कम से कम पूजेगे तो।
