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स्वराक्षी swrakshi स्वरा swra

Classics

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स्वराक्षी swrakshi स्वरा swra

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भावुक मन

भावुक मन

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भावुक मन ये ढूंढ रहा है

न जाने  किस अपने  को

व्याकुल अंखिया देख रही है

अपने बिखरे सपनों  को।


हर से हरि, नर से नारायण

पर  नर  से जग आहत है

पौरुषता की ठोकर खा-खा 

स्त्रीत्व  यहां  मर्माहत  है।


सक्षमता  की  हर बेड़ी  को

ढूंढ - ढूंढ  कर  काट   दिया

शक्ति पुंज की अखंड ज्योत को

दो  भागों  में  बांट  दिया।


कभी छला है प्रेमी बन कर

कभी पुत्र बन आघात किया

कभी खिलौना बना के खेला

और जीवन बर्बाद किया।


खोल चुकी है स्वरा भी आंखे

हाथ  नहीं  अब  आएगी

हर बंधन को तोड़-ताड कर

खुद  में ही  खो  जाएगी।


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