भावनाओं का सुनामी
भावनाओं का सुनामी


जब नीर आँसुओं-से न बहे
दर्द पीड़ा से पीड़ित हो
तो भावनाओं का सुनामी
चौखट पर दस्तक देगा ।
नदियाँ ऊपर से शांत-सी बहे पर
तल पर ज्वार-भाट्टे उगल रही हो तो सुनामी
तोड़ सब मर्यादाएँ विध्वंस मचाएगा ।
हवाएँ शांति से चल रही हो
पर अपने में लाखों बवंडर समाए हो
तो तूफान तो दुनिया उजाड़ेगा ।
समुद्र अपने किनारों में सिमत बहता हो
पर अंदर ही अंदर सुलगता हो तो सुनामी
तोड़ सब किनारे तबाही मचायेगा ।
पहाड़ बर्फ से ढके हो
पर अंदर लावे फूटते हो तो सुनामी
पर्वत श्रृंखलाएँ तबाह करेगा ।
तरू हरे-हरे नजर आते हो
पर अंदर घुन लगे हो
तो खोखले हो मिट्टी में मिल जाएँगे ।
घुन-से दर्दों में जीते लोग
अंदर ही अंदर सुलगते लोग
दर्द को छुपाते लोग
अपने को खोखला बनाते लोग
हकीकत से दूर भागते लोग
कब तक तड़पेंगे
आखिर एक दिन
गुब्बारे-से फट ही जाएँगे ।