भारत के वीर
भारत के वीर


ले जा.... तुझे लेना है
सिर को मेरे ... कितनी बार
शहिद होने के लिए, में तो
आऊंगा बार-बार,
गोली खाई छाती में
नौ महीने की गर्भवती स्त्री
न मुझे कोई दुःख था
न उसकी आंखों में आँसू था
गर्भ में बेटा मेरा, सलाम मुद्रा में
तैर रहा था
कल वो पिता
अपने बेटे को कन्धों पे लिए
आँखें तो आंसूओं से भरी थी
मगर छाती
छप्पन इंच की चौड़ी थी
ये खाली एक भूमि नहीं
गांधी के मंच ये दुर्बल नहीं
इसे सिं
चा है सुभाष के रक्त ने
मां ने कहा था,"रखना
भारत के टेक"
ताबिज, लॉकेट, मौली
लड़ने का सहारा था
मां का आशीर्वाद क्या
कुछ कम था?
अब शुन, सीमा के उस तरफ से
बंधुओं की बंदूक हूं मैं
बहनों की बारुद हूं मैं
ध्वज के तीन रंग हूं मैं
गंगा की पवित्रता हूं मैं
शत् सिंह के महानाद को
लेकर चलता हूं मैं
अब....
लेना है तुझे...ले जा
सिर को मेरे
मैं तो लडूंगा ... लड़ता रहूँगा
बार _बार... बारंबार।