बहार
बहार
लौट भी आओ कि बहार
आ गयी है अब
वसंत का ऋतु है
बयार आ गयी है अब
ठंड सी सिकुड़न थी ना
अब पवन धूप संग है
देखो ना उपवन में
बहार आ गयी है अब
आंखों के कोर दोनों
भीग गये हैं मेरे
थक चुकी है उम्मीद
मिलन के इंतज़ार में
अब नहीं है सब्र राही
को तेरे प्यार में
लौट भी आओ कि
बहार आ गयी है अब।
