बह जाता गंदगी का शहर
बह जाता गंदगी का शहर
निकल रहे आज उनके भी पर
जिनको था कभी हमसे डर
वो इतरा रहे है, दरिया जैसे
पर वो ये भूले हम है, नभचर
हमारे बिन न होगा उनका गुजर
थोड़ी सी हल्दी से पीला होना,
अपने मियां मिट्ठू होना है
सावन बरसता है न जब झर-झर
बह जाता है, तब गंदगी का शहर
