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Nalanda Satish

Abstract

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Nalanda Satish

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बगावत

बगावत

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वह जलता रहा दीए की तरह

लोग बुझाने में लगे रहे आंधियों की तरह।


कदम चूम रही थी दुश्वारियां हर पल

लड़ता रहा मगर अकेले बादशाहों की तरह।


चैन ओ सुकून मयस्सर ना हुआ 

जागता रहा मगर ताउम्र जुगनुओं की तरह।


कैदखाने में रखी थी लाशे सड़ने गलने के लिए

हुकूमतों को हिलाता रहा मगर बुद्ध की तरह।


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