बगावत
बगावत
वह जलता रहा दीए की तरह
लोग बुझाने में लगे रहे आंधियों की तरह।
कदम चूम रही थी दुश्वारियां हर पल
लड़ता रहा मगर अकेले बादशाहों की तरह।
चैन ओ सुकून मयस्सर ना हुआ
जागता रहा मगर ताउम्र जुगनुओं की तरह।
कैदखाने में रखी थी लाशे सड़ने गलने के लिए
हुकूमतों को हिलाता रहा मगर बुद्ध की तरह।
