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DEVSHREE PAREEK

Romance

3  

DEVSHREE PAREEK

Romance

बेवज़ह...

बेवज़ह...

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ग़म-ए-शाम इस कदर तन्हा कर जाती है मुझे

बेवक़्त, बेवज़ह, तेरी बेख़्याली सताती है मुझे…

जाओ कह दो, उस बेपीर से जाकर मेरा हाल

ओ बेक़दर, तेरी बेरूखी, यूँ बहलाती है मुझे…

लाख भूलाना चाहा, ख़ुलुस-ए-दिल ‘अर्पिता ‘

मग़र ये कोशिशें बारहॉं, आज़माती है मुझे।



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