बेटियां को समझो
बेटियां को समझो
मुझे मत नोचो,
मैं अभी तो मासूम सी कली हूँ
अभी अभी तो पुरी,
तरह से खीली,
भी नहीं हूँ ,
नोच नोच कर
पंखुड़ियां भी नहीं,
रहती मेरी
बिखरी बिखरी हो
जाती हैं ये
कभी दस टुकड़े
तो कभी बारह
इतनी हैवानियत,
है इस धरती पर
की काश कोई
लड़की का जन्म,
होते ही मार दी
जाएंगी,
फिर एक ऐसा युग
होगा जहां सिर्फ
मर्द ही होंगे
कभी इस युग,
में कोई औरत,
जन्म न ले पाएगी,
जब तक इस दुनिया से,
दरिद्रता, हैवानियत,
न जाएगी।