बेटी एक दिन पिता को रुला जाती
बेटी एक दिन पिता को रुला जाती
सो के सीने पे हर दिन, सुला जाती है
बेटी एक दिन पिता को, रुला जाती है।।
बेटी फूल है, कली है, क्यारी है
बेटी आंगन की तितली सी प्यारी है
खिलखिलाहट से सब को,खिला जाती है
गुल पिता के चमन में खिला जाती है।
सो के सीने पे हर दिन,सुला जाती है
ये बेटी एक दिन पिता को,रुला जाती है।।
लेके खुशियां गगन से ये आती है
बन के रिमझिम धरा को रिझाती है
गोद धरती का भरना पढ़ा जाती है
मान अम्बर का ऐसे बढ़ा जाती है।
सो के सीने पे हर दिन, सुला जाती है
ये बेटी एक दिन पिता को, रुला जाती है।।
है सुकून ये,खुशी ये, दवाई है
बेसहारे पिता की ये भाई है
दर्द हो सारे जितने मिटा जाती है
घूंट अमृत का ऐसे पिला जाती है।
सो के सीने पे हर दिन,सुला जाती है
ये बेटी एक दिन पिता को,रुला जाती है।।
रीत जग की ये सारी, निभाती भी है
छोड़ बाबुल का अंगना,ये जाती भी है
ऐसे रोती फफक कर,रुला जाती है
कि हूक दिल में पिता के,समा जाती है।
सो के सीने पे हर दिन,सुला जाती है
ये बेटी एक दिन पिता को,रुला जाती है।।
