बेसरकार भले
बेसरकार भले
रैलियां नहीं थी लाखों लोगो की ,
पांच बुड्ढे आदमी भी चौक में पड़े थे।
खुश थे हम सरकारी स्कूलों में जाकर ,
बिना पड़े ऑनलाइन पर फीस नहीं भरे थे।
ऐसी आवारा नाकारा निक्कमी
सरकार से तो हम, बेसरकार भले थे।
हर तरफ झूठ फैलाया हवा भी बेच खाई ,
कभी ऐसी ठंडी के हमको लाले नहीं पड़े थे।
बिन पैसे के मोल भाव कर लेते थे आपस में ,
नोट के मर जाने पर लम्बी -२ कतारों में नहीं खड़े थे।
ऐसी आवारा नाकारा निक्कमी
सरकार से तो हम, बेसरकार भले थे।
ये तो दोष देते फिरते हैं
कमज़ोर वज़ीरों पर ,
अपनी अच्छी थी पंचायत ,
जिसमे पांच आदमी भले थे।
रो रहा हैं देश सिसक सिसक कर,
लाचारी भुखमरी से मरे हैं ,
इससे बेहतर तो अविकसित थे,
जहाँ इंसान इंसानियत पर खड़े थे।
ऐसी आवारा नाकारा निक्कमी
सरकार से तो हम, बेसरकार भले थे।
सरकारी से प्राइवेट ,
प्राइवेट से फिर सरकारी हुए
इन् गपले बाज़ों ने लूटा देश ,
ये फिर प्राइवेट करने पर लड़े हैं।
हर चुनाव में लोगों को ये दुराचारी झांसा देते हैं
इनसे अच्छे संस्कार तो लोहा लकड़ ,
गुली डंडा खेल कर पड़े हैं।
सच कहता हूँ ऐसी आवारा नाकारा निक्कमी
सरकार से तो हम, बेसरकार भले हैं, बेसरकार भले हैं
