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बेशर्मों की तरह !

बेशर्मों की तरह !

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नफ़रत से देखते हो 

फिर प्यार करते हो 

इतना चाहते हो 

फिर भी बदनाम 

करते हो, 


कभी सोचा है 

मेरे बारे में, 

कि लोग 

क्या कहते होंगे, 


जब मैं 

छुप -छुपाकर 

लोगों से 

अकेले तुमसे 

मिलने को 

किसी कि परवाह 

किये बिना,

 

बेशर्मो की 

तरह 

भागी-भागी 

चली आती 

थी !


आज तन्हाइयों में 

ज़ब कभी 

फुर्सत में होती हूँ, 

दिल पे 

हाथ रखकर, 

धड़कन को 

सुनने की 

कोशिश करती हूँ, 


मगर खुद को 

नाकाम पाती हूँ, 

जानते हो क्यूँ, 

क्यूँकि ये धकड़न 

अब हमारी 

नहीं रही,

 

ये तो आपकी 

अमानत है, 

आपकी जुदाई में 

आजकल तो 

धड़कना भी 

छोड़ दिया है !


उस लम्हे में 

अथाह खुशियाँ 

मिलती हैं इसे, 

ज़ब तुम्हारा हाथ 

मेरे हाथों में, 


और होठ 

मेरे होठों को छूते हैं, 

मैं सिमट सी 

जाती हूँ, 

तुम्हारी बाहों में, 


खो देती हूँ 

खुद को 

कुछ पल के 

लिए !


अपना ये इश्क़ 

लोगों के समझ में 

नहीं आएगा, 

अय्याशी की चादर 

ओढ़े हुये हैं 

लोग यहाँ।

 

लोगों की नजरें 

आज भी हमें 

देखती हैं, 

बेशर्मो की तरह...!



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