बेरोज़गार
बेरोज़गार
खामोश अकेला बैठा है बेरोज़गार,
वह कुछ नहीं हर सुबह करता है स्वीकार,
फिर भी प्रतिदिन चुनोतियों का सामना करता है,
हां खामोश अकेला बैठा है बेरोज़गार,
मिल जाये छोटी सी नोकरी सोचता है यही बार बार,
कोई सहायता करे तो करता है प्रगट आभार,
न ख़ुद के पैसे हैं न पहचान है,
इसलिये बस खामोश अकेला बैठा है बेरोज़गार,
प्रयास बहुत करता है,
करता है मेहनत लगातार,
पर असफल होता है बार बार,
फिर भी उम्मीद बांधे हुए है,
बस खामोश अकेला बैठा है बेरोज़गार।
